Monika garg

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लेखनी कहानी -03-Jul-2023# तुम्हें आना ही था (भाग:-24। )#कहानीकार प्रतियोगिता के लिए

गतांक से आगे:-


चंद्रिका ओट में खड़ी थी ।  गुस्से की अधिकता के कारण राजकुमारी कजरी चंद्रिका को नहीं देख पाई।वह झटके से दरवाजे को खोलकर निकल गई।इधर चंद्रिका मन ही मन सोचकर रोने लगी कि आज उसने पाप किया है अपने प्यार पर शक करके ।वह उस गुप्त रास्ते की ओर चल दी और बनावटी पहाड़ी पर से होते हुए सुरंग के रास्ते लाल हवेली लौट आई। मां ने उसे देखा तो उसकी आंखों में आसूं थे।कनक बाई एकदम से घबरा गयी और बोली,

"बिटिया क्या हो गया तुम रो क्यों रही हो ?"


*कुछ नहीं मां ,बस ऐसे ही ।" और यह कहकर कनक बाई की गोद में पड़ कर सिसकने लगी।फिर कुछ सम्भल कर बोली,*मां ऐसा क्यों होता है कि मन को पता है वो मेरा है पर दिमाग हमेशा परीक्षा लेना चाहता है कि वो मेरा है क्या नहीं?"


यह कहकर उसने महल में घटित बात कनक बाई को बता दी।तभी चिंतित होते हुए कनक बाई बोली,

"बिटिया मैं तुझे अब भी सावधान कर रही हूं कि इन बड़े लोगों के चक्करों में मत पड़ो।अगर राजकुमारी कजरी का दिल उस राज शिल्पी पर आ गया है तो तुम रास्ते से हट जाओ वरना वो तुम को जिंदा नहीं छोड़े गी। मुझे पता है वो कितनी जिद्दी है बचपन से ही ।जब राजा जी रंग महल में होते थे तो बहुत बार बीच बीच में उठकर अंदर जनानखाने में जाते थे क्योंकि राजकुमारी कजरी बचपन से ही जिद्दी और कर्कश है एक चीज को अगर लेने का मन होगा तो लेकर ही रहेगी।"


"मां  मैंने भी आज यहीं सोचकर देव की परीक्षा ली थी कि अगर देव राजकुमारी की तरफ जरा भी आकर्षित होगा तो मैं रास्ते से हट जाऊगी लेकिन मां मैं हार गयी जैसे वो मेरी नस-नस में बहता है वैसे ही मैं उसके मन-मस्तिष्क में समाई हुई हूं ।आज मेरे कारण उसने राजकुमारी कजरी का हाथ ठुकरा दिया। राजकुमारी कजरी ने कहा कि मुझसे विवाह करके तुम राजपद के अधिकारी हो जाओगे पर मेरा देव टस से मस नहीं हुआ और बोला मुझे राजपद की कोई लालच नहीं है। मां अब मैं उसके प्यार को कैसे ठुकरा दूं । मैंने पाप किया है अपने प्यार पर शक करके। मुझे दंड मिलना ही चाहिए ।"


यह कहकर चंद्रिका ने दीवार पर टंगा कोड़ा उतारा और ताबड़तोड़ अपने ही ऊपर कोड़े बरसाने लगी। कनक बाई ने दौड़कर उसे अपनी बाहों में भर लिया और बोली,"बिटिया तू जीत गयी और मैं हार गयी ।तुम दोनों ही एक दूसरे से सच्चा प्यार करते हो ।ये इस जन्म का नहीं जन्म जन्मांतर का प्यार है तुम दोनों का ।बस भगवान से यही प्रार्थना है कि इसे किसी की नज़र ना लगे।"



इधर सुमंत्र बड़ी बेचैनी से अपने कक्ष में घुम रहा था ।उस को बस ऐसा लग रहा था कि किसी तरह सवेरा हो और वो राजा वीरभान से ये सब बताते कि राज नर्तकी किस तरह चोरी छुपपे देवदत्त से मिलने आती है।


इधर राजकुमारी कजरी भी अपने कमरे में गुस्से से टहल रही थी और सोच रही थी कि किस तरह से देवदत्त का पीछा चंद्रिका से छुड़ाया जाएं। पिताजी तो उसकी जिद के आगे हमेशा झुकते आये है अब भी झुक ही जाएंगे और देवदत्त से उसका विवाह करवा देंगे ।जब विवाह हो जाएगा तो झख मारकर देवदत्त को उसे अपनाना ही पड़ेगा।


और उधर देवदत्त अपने कक्ष में बैठा सोच रहा था कि ये राजकुमारी कजरी मेरे ही पीछे क्यों पड़ी है जबकि आज तो मैंने। साफ़ साफ़ कह भी दिया है कि मैं आप को नहीं चाहता लेकिन फिर भी पीछा नहीं छोड़ती ।कसम से इसने एक बार और अगर मेरी चंद्रिका के लिए कुछ ग़लत बोला तो मैं ये नहीं देखूंगा कि ये राजकुमारी है धक्के मारकर इसे कक्ष से निकाल दूंगा भले ही मुझे राजा जी के कोप का भाजन बनना पड़े।



चार व्यक्ति और चार ही सोच ।एक रात्रि में चार व्यक्ति अलग अलग जगह पर अलग-अलग बातें सोच रहे थे।बस उसमें से दो प्यार करने वाले थे तो दो प्यार के दुश्मन।


सुबह हुई । सुमंत्र ने दरबार लगने तक का सब्र नहीं किया और पहुंच गया राजा वीरभान के कक्ष के बाहर । पहरेदार से बोला कि अंदर जाकर बोल दे कि सुमंत्र , सेनापति का लड़का आप से मिलना चाहता है।


राजा वीरभान ने सोचा इतनी सुबह-सुबह क्या काम है सकता है सेनापति के लड़के को ? हो सकता है इसके पिता जंग पर गये है उनकी कोई खबर लाया हो और तुरंत अंदर बुला भेजा।


"कहो कैसे आना हुआ सुमंत्र?"


"जी राजा जी ,आप को कोई बात बतानी थी इसलिए दरबार लगने तक का भी सब्र नहीं कर सका। राजा जी, राजा के अधिकार में जो चीज होती है वह किसी और की नहीं हो सकती ना?"


"पहेलियां मत बुझाओ हम से सुमंत्र साफ़ साफ़ कहो क्या कहना चाहते हो।"

" राजा जी राज नर्तकी चंद्रिका चोरी चोरी राज शिल्पी देवदत्त से मिलने आती है और कल तो मैंने उसे रंगे हाथों पकड़ा।"


"ये कैसे हो सकता है । हमारी आज्ञा के बिना वो कैसे मिल सकती है वो राज धरोहर है ।आज आने दो दरबार में हम बात करते हैं ।"


उसके थोड़े ही देर बाद राजकुमारी कजरी पैर पटकते हुए राजा वीरभान के कक्ष में पहुंची और बोली,"पिताजी मुझे ये चंद्रिका एक आंख नहीं सुहाती है ये राज शिल्पी देवदत्त पर डोरे डाल रही है जो मुझे बिल्कुल पसन्द नहीं है। मैं देवदत्त को चाहती हूं और ये मेरे रास्ते में बाधा बन कर खड़ी है।"


अब एक ही दिन में  राज नर्तकी चंद्रिका के खिलाफ दो दो शिकायतें।राजा वीरभान की भृकुटी तन गयी ।वो दरबार लगने का इंतजार करने लगें।वैसे तो राजा वीरभान उसे कभी भी बुला सकते थे लेकिन राज दरबार में सभी दरबारी और मंत्री के सामने दूध का दूध ,पानी का पानी हो जाता।फिर राजा चार्य भी होते हैं दरबार में तो वो भी उचित अनुचित का मार्गदर्शन करते। राजा वीरभान ने अपने दास   को भेजकर चंद्रिका को दरबार में हाज़िर  होने के लिए बोला।



कहानी अभी जारी है……….



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